खेतों में महक रहे धान
टुकुर-टुकुर देख रहा लॉन
धरती से बतियाती ओस
भीगी-भीगी लगती रात
सर्दी की गुनगुनी छुवन
डाल-डाल और पात-पात
ठाँव-ठाँव पाँव के निशान
टुकुर-टुकुर देख रहा लॉन
चहक उठे चिड़ियों के झुंड
आपस में साधे सुर ताल
धोखा है बीच में खड़ा
भूख भी नहीं सकते टाल
शायद कुछ मिल जाए दान
टुकुर-टुकुर देख रहा लॉन
गर्म हवा राजनीति की
मेड़ों पर कर रही सलाह
ठंडे हैं सूरज के बोल
सिमट रही बरगद की छाँह
कुहरे में क्या करे किसान
टुकुर-टुकुर देख रहा लॉन।
-डॉ. अशोक अज्ञानी
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