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December 6, 2011

सूरज लील लिए

हिरना
इस जंगल में
कब पूरी उम्र जिए

घास और पानी पर रहकर
सब तो, बाघों के मुँह से
निकल नहीं पाते
कस्तूरी पर वय चढ़ते ही
साये, आशीषों के
सिर पर से उठ जाते
कस्तूरी के माथे को
पढ़ते बहेलिए

इनके भी जो बूढ़े मुखिया होते
साथ बाघ के
छाया में पगुराते
कभी सींग पर बैठ
चिरैया गाती
या फिर मरीचिकाओं पर मुस्काते
जंगल ने कितने
तपते सूरज लील लिए

-वीरेन्द्र आस्तिक