जबकि वक्त है…
शौक तुम्हें
अब भी घर में
सामान जोड़ने का
जबकि वक्त है
खाली करके
इसे छोड़ने का
और अभी बंदनवारें
कितनी बनवानी हैं
और कहां,कितनी लड़ियां
झूलन लटकानी हैं
खिड़की -द्वारे तोड़ पुराने ,
नए लगाना है
दीवारों पर कितनी उबटन
और चढ़ानी है
सोना सिर पर लाद
कहां तक
और दौड़ने का !!!
कहते हो-ऊपर पक्का
कमरा बनवाना है
और मरम्मत टूटे सोफे की
करवाना है
बाथरूम फिल्मी ढंग के
और किचिन बनाना है
फर्श पुराने को उखाड़कर
नया लगाना है !!
घर का मुँह पूरब से
पश्चिम ओर मोड़ने का
ऐसी भी क्या आज
जरूरत धूल उड़ाने की
फर्श पुराने को उखाड़कर
नया लगाने की
चिन्ता कुछ भी नहीं
पुराना कर्ज पटाने की
लिया जहाँ से जो कुछ वह
वापस लौटाने की
वक्त हुआ सतनाम
ओढ़नी
आज ओढ़ने का !!
यह पड़ाव पीले पत्तों जैसा
गिरने का है!
शान्त चित्त से ग्रंथों के अध्ययन
करने का है !
यह क्षण प्रभु में ध्यान शान्त
मन से धरने का है !
शोषित दीन-दलित, दुखियों के
दुख हरने का है !!
वक्त यही है
उपनिषदों से
रस निचोड़ने का !!
शौक तुम्हें
अब भी घर में
सामान जोड़ने का
-राजेन्द्र शर्मा 'अक्षर'
सुंदर संंदेशप्रद नवगीत सर
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ नवम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह
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