ठंड लगी है, सिकुड़ रहे हो
कहो कबीरा ! चादर दूँ ?
मन की पीर नही ले सकता
तन के हित क्या लाकर दूँ ?
मेरी चादर कुछ मैली है
थोडा सा सह लोगे क्या ?
अभी भोर में बहुत देर है
अपनाकर रह लोगे क्या ?
तुमसे एक जुलाहे तुम ही,
तुमको क्या बनवाकर दूँ ?
काशी में कबीर हो जाना
आज शिष्ट व्यवहार नही,
और नगर ये उलटबाँसियाँ
सहने को तैयार नहीं
सुनो कबीरा ! वहाँ न जाना
धूनी यहीं रमाकर दूँ ?
हो सकता है समय लगे
"मगहर" होने में काशी को,
कबिरा से अल्हड फ़कीर का
घर होने में काशी को
बोलो तुम्हें कहाँ से सुख दूँ,
कहो कौनसा आदर दूँ ?
दुनिया की हालत है जैसे
धुनी रुई के फाहे की,
मगर उसे भी फिक्र नहीं है
वो भी एक जुलाहे की ?
जटिल पहेली पूछी साधो !
मैं कैसे सुलझाकर दूँ ?
-चित्रांश वाघमारे
कहो कबीरा ! चादर दूँ ?
मन की पीर नही ले सकता
तन के हित क्या लाकर दूँ ?
मेरी चादर कुछ मैली है
थोडा सा सह लोगे क्या ?
अभी भोर में बहुत देर है
अपनाकर रह लोगे क्या ?
तुमसे एक जुलाहे तुम ही,
तुमको क्या बनवाकर दूँ ?
काशी में कबीर हो जाना
आज शिष्ट व्यवहार नही,
और नगर ये उलटबाँसियाँ
सहने को तैयार नहीं
सुनो कबीरा ! वहाँ न जाना
धूनी यहीं रमाकर दूँ ?
हो सकता है समय लगे
"मगहर" होने में काशी को,
कबिरा से अल्हड फ़कीर का
घर होने में काशी को
बोलो तुम्हें कहाँ से सुख दूँ,
कहो कौनसा आदर दूँ ?
दुनिया की हालत है जैसे
धुनी रुई के फाहे की,
मगर उसे भी फिक्र नहीं है
वो भी एक जुलाहे की ?
जटिल पहेली पूछी साधो !
मैं कैसे सुलझाकर दूँ ?
-चित्रांश वाघमारे
वाह । अत्यंत रोचक एवं प्रभावशाली गीत।
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