दरवाजे का
आम-आँवला
घर का तुलसी-चौरा
इसीलिए!
अम्मा ने अपना
गाँव नहीं छोड़ा
पैबन्दों को सिलते
मन से उदास होती
भैया के आने की खुशबू
भर से खुश होती
भाभी ने
कितना समझाया
मान नहीं तोड़ा
कभी-कभी
बजते घर में
घुंँघरू से पोती-पोते
छोटे-छोटे बँटे बताशे
हाथों के सुख होते
घर की खातिर
लुटा दिया सब
रखा न कुछ थोड़ा
गहना बनने
वाले दिन में
खेत खरीद लिये
बाबूजी के
कहे हुए सब
सपने संग लिए
सह न सकी
जब खूँटे पर से
गया बैल जोड़ा
-डा० शांति सुमन
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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