एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगनेफूले तो
आ जाना
एक फूल माँगने
ढिबरी की लौ
जैसे लीक चली
आ रही
बादल का रोना है
बिजली शरमा रही
मेरा घर छाया है
तेरे सुहाग ने
फूले तो...
तन कातिक
मन अगहन
बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुँआर
जैसे कुछ बो रहा
रहने दो
यह हिसाब
कर लेना बाद में
तन कातिक
मन अगहन
बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुँआर
जैसे कुछ बो रहा
रहने दो
यह हिसाब
कर लेना बाद में
फूले तो...
नदी, झील, सागर के
रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है
यहाँ-वहाँ छोड़ना
मुझको
पहुँचाया है
तुम तक अनुराग ने
नदी, झील, सागर के
रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है
यहाँ-वहाँ छोड़ना
मुझको
पहुँचाया है
तुम तक अनुराग ने
फूले तो...
-देवेन्द्र कुमार बंगाली
-देवेन्द्र कुमार बंगाली
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ अगस्त २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अद्भुत प्राकृतिक बिम्बों के संयोजन से एक उत्कृष्ट भावनात्मक शब्द-चित्र ...
ReplyDeleteवाह! सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर नवगीत प्रतीकों और बिंबों का सार्थक प्रयोग
ReplyDeleteवाह
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