ओ महुवे के फूल!
द्वार पर तुम ज्यों ही आये
शब्द, रूप, रस, गन्ध,
स्पर्श के बिम्ब उभर आये
तुम्हें परस पल्लवित हो गयी
शाख अँगुलियों की
कानों को स्वर मिला
ज्योति बढ़ गयी पुतलियों की
घर-आँगन जी गये,
भीत की ईंट-ईंट गाये
ओ यौवन के फूल!
कौन-सा नशा साथ लाये
ओ महुवे के फूल...
लगता जैसे चाँद चू गया
खुली गदोरी पर
फुदके पंछी हँसी-किरन के
ओरी-ओरी पर
साधों की हंसिनी,
मगन हो पाँखें थिरकाये
ओ पूनम के फूल!
कौन-सा मौसम तुम लाये
ओ महुवे के फूल...
-रामसेवक श्रीवास्तव
(पाँच जोड़ बाँसुरी से)
क्या बात है रामसेवक जी।महुवे के फूल से नहीं मन की अनंत खुशी से मन और आँखों के मौसम बदल जाते हैं।तभी चाँद की चाँदनी झरती बरसती है तो कई तरह के नशे अन्दर बाहर छा जाते हैं।सुन्दर शृंगार रचना,महुवे सी महकती 👌👌👌🙏
ReplyDeleteवाह!!
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