August 15, 2023

घर की याद

तपी सड़क पर, 
पाँव जला लेते जब माहेश्वर,
याद बहुत आता है, 
ठंडी अमराई-सा घर

घर, जिसमें बाबू रहते थे, 
अम्मा रहती थीं 
नानी, राजा-रानी बुनी, 
कहानी कहती थीं
घर, जिसमें चूल्हे पर पकती 
दाल मँहकती थी 
नाउन, महरिन चाची की, 
कनबतियाँ चलती थीं 
सम्बन्धों की सूनी आँखों में, 
भर आता है, 
प्यार, दुलार भरे भइया-सा, 
भौजाई-सा घर 
याद बहुत आता है... 

आते थे मुजीमपुर से, 
बाबा झोला डाले 
कोनों में थे, चच्चा के 
बीड़ी वाले आले 
अपनेपन की धन-दौलत, 
बँटवारे दुख-सुख के 
बन्द बरोठों में पसरे पल, 
चैन शान्ति वाले 
हार्न, सायरन, बन्दूकों, 
विस्फोटों में रह-रह 
कानों में बजता है, 
मंगल शहनाई-सा घर 
याद बहुत आता है... 

दादी देती थीं गुड़-पट्टी, 
लड्डू लइया के 
भुनसारे तक चलते थे, 
मीठे जस मइया के 
आँगन भर थी धूप शिशिर को, 
छपरी भादों को 
तपे जेठ में सुख थे, 
नीम तले चरपइया के 
कोल्डड्रिंक, कॉफ़ी, रम, 
व्हिस्की के कडुवेपन में 
बसा स्वाद में अब तक, 
मीठी ठंडाई-सा घर 
याद बहुत आता है, 
ठंडी अमराई-सा घर। 

-डॉ० विनोद निगम

1 comment:

  1. Anonymous7:04 PM

    बहुत सुंदर भाव । रेणु चन्द्रा

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