(पन्द्रह अगस्त 1947 की रात को लिखा गया यह ऐतिहासिक गीत)
आज जीत की रात
पहरुए ! सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नए स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जनमंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अम्बुधि समान रहना
पहरुए ! सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नए स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जनमंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अम्बुधि समान रहना
पहरुए ! सावधान रहना...
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गईं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफ़ान, इन्दु ! तुम
दीप्तिमान रहना
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गईं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफ़ान, इन्दु ! तुम
दीप्तिमान रहना
पहरुए ! सावधान रहना...
ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रही नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए ! सावधान रहना
ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रही नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए ! सावधान रहना
पहरुए ! सावधान रहना...
-गिरिजा कुमार माथुर
-गिरिजा कुमार माथुर
अद्भुत रचना। ७६ साल बीत जाने के बाद भी इसका प्रासंगिक होना इसकी विलक्षणता की पुष्टि है परंतु हमारे समाज और राष्ट्र के लिए बहुत अच्छी बात नहीं कि कितनी ही समस्याएँ और विषमताएँ ज्यों की त्यों बनी हुई हैं।
ReplyDeleteव्योम जी, इतना अच्छा गीत पढ़वाने के लिए आपका आभार।
sunder
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