बाँध लिये अँजुरी में-
जूही के फूल
मधुर गन्ध,
मन की हर एक गली महक गयी
सुखद परस,
रग-रग में चिनगी-सी दहक गयी
रोम-रोम उग आये-
साधों के शूल।
जोन्हा का जादू
जिन पंखुरियों था फैला,
छू गन्दे हाथों -
मैंने उन्हें किया मैला,
हाथ काट लो-
मेरे...
सजा है कबूल।
आह !
हो गयी मुझसे
एक बड़ी भूल
अँजुरी में बाँध लिये
जूही के फूल।
-रवीन्द्र भ्रमर
(पाँच जोड़ बाँसुरी से)
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