उपवन का सन्नाटा
एक चीख तोड़ गई
अनगिन संदर्भों के
प्रश्नचिह्न छोड़ गई
आँख है गुलाबों
शूलों की कारा में
आँगन की मर्यादा
शापों की धारा में
गाँव के अबोलों से
रिश्तों की टूटन भी
राखी के हाथों को
असमय मरोड़ गई
उपवन का...
शैतानी मंसूबे
दाँव लगा जीत गए
पनघट के प्रेमभरे
कुंभ- कुंभ रीत गए
सदियों के स्निग्ध स्नात
खेतों की पगडंडी
बारूदी गलियारे
अनचाहे जोड़ गई
उपवन का...
श्लोकों-सी जिंदगी
नारों में डूब गई
घाटों में बँधी हुई
नौका-सी ऊब गई
मावस का अविश्वास
जूड़े-सा छूट गया
दामिनी घट कालिख का
दुपहर में फोड़ गई.
-जीवन शुक्ल
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