हल्दी चढ़ी
पहाड़ी देखी
मेंहदी रची धरा
अँधियारे के साथ
पाहुना गीत-विहग उतरा
गाँव फूल-से
गूँथ दिये
सर्पिल पगडण्डी ने
छोर फैलते
गये मसहरी के
झीने-झीने
दिन,
जैसे बाँसुरी बजाता
बनजारा गुज़रा
पाहुना गीत-विहग...
पोंछ पसीना
ली अँगड़ाई
थकी क्रियाओं ने
सौंप दिये
मीठे सम्बोधन
खुली भुजाओं ने
जोड़ गया
सन्दर्भ मनचला
मौसम हरा-भरा
पाहुना गीत-विहग...
-रमेश रंजक
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