December 9, 2023

चलिए, बाजार तक चलें

एक  अदद
शब्द के लिए
चलिए, 
बाजार तक चलें
मौसम का
हाल पूछने -
ताज़ा अख़बार तक चलें ।

 ज़िस्म मेमने
 का क्या हुआ
 बेतुका सवाल छोड़िए
 स्वाद के नशे में घूमते
 भेड़िए को हाथ जोड़िए
 ज़ुर्म की शिनाख़्त के लिए
 आला दरबार तक चलें ।
 
 ऐसी आंँधी गुज़र  गई
 ज़हर हुए, वन, नदी, पहाड़
 सगे-सगे लगे हैं हमें
 डोलते कबंध, कटे ताड़
 लदे हरसिंगार के लिए
 छपे इश्तेहार तक चलें। 

जोंक जो हुई ये ज़िन्दगी
उम्र है ढहा  हुआ किला
तेंदुए मिले कभी-कभी
आदमी कहीं नहीं मिला
आइए, तलाश के लिए
इसी यादगार तक चलें। 
    
-उमाशंकर तिवारी

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