फिर कुण्डी खटकी है शुभदे
देख नया दुख आया होगा
खुद चल कर आया होगा/या
अपनों ने पहुंचाया होगा.
सबके हिस्से में से,थोड़ी-थोड़ी
रोटी और घटाले
दाल जरा सी है तो क्या है
थोड़ा पानी और बढ़ा ले
भूख उसे लग आई होगी
पता नहीं कब खाया होगा.
इतने जब पलते आए हैं
एक और भी पल जायेगा
खुश हो पगली,हमको भी इक
नया सहारा मिल जाएगा
दुख ही तो ऐसा साथी है
जो न कभी पराया होगा.
ये बेचारे कहां ठहर पाते हैं
सूरज वालों के घर
इनकी गुजर-बसर होती है
हम जैसे कंगालों के दर
पूछ देख ले किसी हवेली ने
दुत्कार भगाया होगा?
-प्रदीप दुबे
उम्दा सृजन , इस नवगीत में मैंने जो ओछा की पति पत्नी का वार्तालाप है जो अकेले रहते हैं और सीमित संसार है लेकिन कोई आ जाए नया सदस्य तो वो भी संग में सूखी रोटी में हमारे साथ खुशी खुशी रह लेगा। सुंदर अभिव्यक्ति।
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