September 5, 2023

राजा मूँछ मरोड़ रहा है

                        शिक्षक दिवस पर हार्दिक सुभकामनाएँ


एक आदर्श सिक्षक अपने छात्रों को यह सिखाता है कि वे अपने आप को समझें, अपने आत्मविश्वास को जगाएँ, अन्याय और अत्याचार का विरोध करने का साहस रखें।... जब व्यवस्था मूँछें मरोड़ने लगती है तो जन-साधारण गोलबंद होने लगते हैं... और फिर जनता दिखा देती है कि वास्तव में असली ताकत मूँछों में नहीं... बल्कि उसके साथ है।... ‘वाणी प्रकाशन’ से हाल ही में प्रकाशित मेरे नवगीत-संग्रह  "इतना भी आसान कहाँ है" से एक नवगीत-
                                                                                -डा. जगदीश व्योम

राजा मूँछ मरोड़ रहा है

राजा मूँछ मरोड़ रहा है
सिसक रही हिरनी

बड़े-बड़े सींगों वाला मृग
राजा ने मारा
किसकी यहाँ मजाल
कहे राजा को हत्यारा
मुर्दानी छायी जंगल में
सब चुपचाप खड़े
सोच रहे सब यही कि
आखिर आगे कौन बड़े
घूम रहा आक्रोश वृत्त में
ज्यों घूमे घिरनी
सिसक रही...

एक कहीं से स्वर उभरा
मुँह सबने उचकाये
दबे पड़े साहस के सहसा
पंख उभर आये
मन ही मन संकल्प हो गए
आगे बढ़ने के
जंगल के अत्याचारी से 
जमकर लड़ने के
पल में बदली हवा
मुट्ठियाँ सबकी दिखीं तनी
सिसक रही... 

रानी तू कह दे राजा से
परजा जान गयी
अब अपनी अकूत ताकत 
परजा पहचान गयी
मचल गयी जिस दिन परजा
सिंहासन डोलेगा
शोषक की औकात कहाँ 
कुछ आकर बोलेगा
उठो! उठो! सब उठो!
उठेगी पूरी विकट वनी
सिसक रही हिरनी।

-डा० जगदीश व्योम

7 comments:

  1. Anonymous11:25 AM

    बहुत सुंदर नवगीत । बहुत बहुत बधाई । रेणु चन्द्रा

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  2. सहसा साहस के पँख उभर आए.. बहुत सुंदर
    जबरदस्त कटाक्ष एवं प्रेरित करती रचना।

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  3. पल में बदली हवा भी
    मुट्ठियां सबकी दिखीं तनी

    शानदार नवगीत

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  4. Anonymous3:34 AM

    बहुत सुंदर नवगीत

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  5. तीखे व्यंग्य करता.. नवगीत। आपकी लेखनी अद्भुत

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