प्रहर,दिवस, मास, वर्ष बीते
जीवन का कालकूट पीते.
पूँछें उपलब्धियाँ हुईं
खेलते हुए साँप-सीढ़ी
मंत्रित-निस्तब्ध सो गयी
युद्ध-भूमि में युयुत्सु पीढ़ी
कंधों पर ले निषंग रीते
प्रहर,दिवस, मास...
खुद ही अज्ञातवास ओढ़कर
धनञ्जय बृहन्नला हुआ
मछली फिर तेल पर टँगी है
धनुष पड़ा किंतु अनछुआ
कौन इस स्वयंवर को जीते
प्रहर,दिवस, मास...
जाने कैसा निदाघ तपता है
आग भर गयी श्यामल घन में
दावानल कौन बो गया
चीड़-शाल-देवदारु-वन में
अकुलाये सिंह-व्याघ्र-चीते
प्रहर,दिवस, मास...
-धनञ्जय सिंह
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