अजीब दृश्य है
सभाध्यक्ष हंँस रहा
सभासद
कोरस गाते हैं
जय-जयकारों का
अनहद है
जलते जंगल में
कौन विलाप सुनेगा
घर का
इस कोलाहल में
पंजों से मुंँह दबा
हमारी
चीख दबाते हैं
चंदन को
अपने में घेरे
सांँप मचलते हैं
अश्वमेघ के
घोड़े बैठे
झाग उगलते हैं
आप चक्रवर्ती हैं-
राजन!
वे चिल्लाते हैं
अजब दृश्य है
लहरों पर
जालों के घेरे हैं
तड़प रही मछलियांँ
बहुत खुश
आज मछेरे हैं
कौन नदी की सुने
कि जब
यह रिश्ते-नाते हैं
-सत्यनारायण
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