November 26, 2023

उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से

                                [डॅा. कुँअर बेचैन जी का एक गीत]

जितनी दूर नयन से सपना
जितनी दूर अधर से हँसना
बिछुए जितनी दूर कुँआरे पाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से!

हर पुरवा का झोंका तेरा घूँघरू
हर बादल की रिमझिम तेरी भावना
हर सावन में तेरे आँसू की व्यथा
हर कोयल की ‘कुहू’ में तेरी कल्पना
जितनी दूर खुशी हर ग़म से
जितनी दूर साज़ सरगम से
जितनी दूर पात पतझर का, छाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से!

हर पत्ते में तेरा हरियाला बदन
हर कलिका में तेरी ही प्रिय साधना
हर डाली में तेरे तन की झाँइयाँ
हर मंदिर में तेरी ही आराधना
जितनी दूर रूप घूँघट से
जितनी दूर प्यास पनघट से
गागर जितनी दूर नीर की ठाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से!

क्या है, कैसा है, कैसे मैं यह कहूँ
तुझसे दूर, अपरिचित, फिर भी प्रीत है
है इतना मालूम कि तू हर साँस में
बसा हुआ जैसे मन में संगीत है
जितनी दूर लहर हर तट से
जितनी दूर शोखियाँ लट से
जितनी दूर याद कागा की काँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से!
                      
-डा० कुँअर बेचैन

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