सब को
अन्न खिलाने वाला
कब तक भूखा सोयेगा
सब्र
कभी तो खोयेगा!
खाद, बीज
आकाश छू रहे
डीजल ने भी
पर खोले
दिल्ली
नहीं किसी की सुनती
कोई
कितना भी बोले
भूमि-पुत्र कब तक
अपनी
इस बदहाली पर रोयेगा
सब्र कभी तो......
खेती का भी
एक गणित है
लगता है सीधा सादा
सस्ती उपज,
आय भी कम है,
लागत इसमें है ज़्यादा
घाटे के
इस सौदे पर वह
कब तक सपने बोयेगा.
सब्र कभी तो........
धरा पुत्र है
शूरवीर ये
चौड़ा है इसका सीना
बाधाओं से
रहा जूझता
सीखा कष्टों में जीना
भ्रष्ट-तंत्र
बढ़ रहा 'कूकणा'
लुटिया यही डुबोयेगा
सब्र कभी........
-राय कूकणा
सुंदर!
ReplyDeleteसार्थक सन्देश दिया है आपने
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