दोपहरी सिमट गई
छितराई शाम
सूरज ने पश्चिम की
फाँदी दीवार
धरती में पसर गया
साँवल अँधियार
रोशनियाँ सड़कों की
हुई टीम- टाम
दोपहरी सिमट गई
छितराई शाम
फूलों ने उढ़काए
द्वार के कपाट
सैलानी भौंरे तब
हुए घाट-बाट
सोच रहे कैसे अब
छलकाएँ जाम
दोपहरी सिमट गई
छितराई शाम
अंबर में बगुलों की
सितबरनी पाँत
संध्या रानी के ज्यों
मोती-से दाँत
नीड़ों में पक्षी गण
करते विश्राम
दोपहरी सिमट गई
छितराई शाम
माधो मछुआरे ने
बाँध लिया जाल
लौट चला फिर उसको
काँधे में डाल
मंदिर के पिछवाड़े
फेंककर प्रणाम
दोपहरी सिमट गई
छितराई शाम
-ईश्वरी प्रसाद यादव
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 21 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह!! अत्यंत मनोरम शब्द चित्र।
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