कुछ भी बदला नहीं फलाने
सब जैसा का तैसा हैसब कुछ पूछो
यह मत पूछो
आम आदमी कैसा है
क्या सचिवालय
क्या न्यायालय
सबका वही रवैय्या है
बाबू बड़ा ना
भैय्या प्यारे
सबसे बड़ा रुपैय्या है
पब्लिक जैसे
हरी फसल है
शासन भूखा भैंसा है
मंत्री के
पी.ए. का नक्शा
मंत्री से भी हाई है
बिना कमीशन
काम न होता
उसकी यही कमाई है
रुक जाता है
कहकर फौरन
देखो भाई ऐसा है
मनमाफिक
सुविधाएँ पाते
हैं अपराधी जेलों में
कागज पर
जेलों में रहते
खेल दिखाते मेलों में
जैसे रोज
चढ़ावा चढ़ता
इन पर चढ़ता पैसा है
-कैलाश गौतम
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-०६-२०२१) को 'बारिश कितनी अच्छी यार..' (चर्चा अंक- ४०९३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसही और सटीक ब्यौरा
ReplyDeleteसटीक दृश्य उकेरा है आज का ।
ReplyDeleteव्यंग्य शैली में शानदार सृजन।