मज़लूमों की
छत के नीचे
मिले नौकरी-चारा
ऐसा हो
संघर्ष हमारा।
सबको
आदर-भाव
सौंप दें
समता-बीज पड़ें
द्वेष-घृणा
चिन्तन से
निकलें
उन्नत पाँव बढ़ें
कृषक
मजूरों के
जीवन में
लौटे हर्ष दुबारा
ऐसा हो
संघर्ष हमारा।
एक वर्ण
मानवता पा ले
जाति भेद
से दूरी
ऊँच-नीच की
कारा टूटे
कुछ भी
हो मजबूरी
रार बिना मिल
जाने वाला
खोजें छोर-किनारा
ऐसा हो
संघर्ष हमारा।
आंँस चटकती
काँच सरीखी
हिम्मत मांँगे पानी
रोज़नदारी
लिये आस्था
पूजे गाँव गिरानी
नाक सभी
चेहरों पर आये
ब्याहें सपन कुँवारा
ऐसा हो
संघर्ष हमारा।
-रामकिशोर दाहिया
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