नदीधार ने
कुछ हिरदय ने
हमें बनाया बहता पानी
बरसों पहले
हम जनमे थे नदी किनारे
सुरज देवता तब रहते थे
घर के द्वारे
रहो सहज ही -
बहते जल से
यही सीख हमने है जानी
अम्मा ने था कहा -
नदी है तारनहारी
चाहे कुछ हो
कभी नहीं होती वह खारी
झुर्री-झुर्री हुई
साँस में
बसी हुई माँ की वह बानी
एक नेह का सोता भीतर
देता साखी
बहते जल ने ही
मानुष की पत है राखी
पिछले दिनों
नदी को देखा-
नहीं लगी जानी-पहचानी
-कुमार रवीन्द्र
कुछ हिरदय ने
हमें बनाया बहता पानी
बरसों पहले
हम जनमे थे नदी किनारे
सुरज देवता तब रहते थे
घर के द्वारे
रहो सहज ही -
बहते जल से
यही सीख हमने है जानी
अम्मा ने था कहा -
नदी है तारनहारी
चाहे कुछ हो
कभी नहीं होती वह खारी
झुर्री-झुर्री हुई
साँस में
बसी हुई माँ की वह बानी
एक नेह का सोता भीतर
देता साखी
बहते जल ने ही
मानुष की पत है राखी
पिछले दिनों
नदी को देखा-
नहीं लगी जानी-पहचानी
-कुमार रवीन्द्र
No comments:
Post a Comment