June 25, 2018

एक नेह का सोता भीतर

नदीधार ने
कुछ हिरदय ने
हमें बनाया बहता पानी

बरसों पहले
हम जनमे थे नदी किनारे
सुरज देवता तब रहते थे
घर के द्वारे
रहो सहज ही -
बहते जल से
यही सीख हमने है जानी

अम्मा ने था कहा -
नदी है तारनहारी
चाहे कुछ हो
कभी नहीं होती वह खारी
झुर्री-झुर्री हुई
साँस में
बसी हुई माँ की वह बानी

एक नेह का सोता भीतर
देता साखी
बहते जल ने ही
मानुष की पत है राखी
पिछले दिनों
नदी को देखा-
नहीं लगी जानी-पहचानी

-कुमार रवीन्द्र

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