मथुरा का पथ
सुनो, यहीं से से होकर जाता
आते-जाते हैं हरकारे रोज़ इधर से
डरते-डरते लोग निकलते अपने घर से
राजा का
साधो, परजा से झूठा नाता
हाँका पड़ा नदी पर - शाही बजरे आये
राजा जी के विरुद गये घर-घर में गाये
अब भी
पगला सूर किशनजी के गुण गाता
वंशी चुप है - धर्मक्षेत्र में बिगुल बज रहा
नदी पूछती - क्यों परजा का लहू है बहा
बोधगया में
बिलख रही क्यों, बंधु, सुजाता
-कुमार रवीन्द्र
सुनो, यहीं से से होकर जाता
आते-जाते हैं हरकारे रोज़ इधर से
डरते-डरते लोग निकलते अपने घर से
राजा का
साधो, परजा से झूठा नाता
हाँका पड़ा नदी पर - शाही बजरे आये
राजा जी के विरुद गये घर-घर में गाये
अब भी
पगला सूर किशनजी के गुण गाता
वंशी चुप है - धर्मक्षेत्र में बिगुल बज रहा
नदी पूछती - क्यों परजा का लहू है बहा
बोधगया में
बिलख रही क्यों, बंधु, सुजाता
-कुमार रवीन्द्र
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