आओ बैठो पास कबीर
हम दोनों की एक लकीर
तुम अँधियारा दूर भगाते
हम गीतों की जोत जलाते
दोनों साधे रहते मन में
अपने आँसू-जग की पीर
तन माटी का, जगत कांच का
फिर भी झगड़ा तीन–पाँच का
मन जोगी तो, लगे एक से
राख मलें या मलें अबीर
तुमने धूप चदरिया तानी
हमने इन गीतों की बानी
सूरज ओढ़ा दोनों ने ही
हम राही तुम आलमगीर
मृगजल के सारे घर रीते
कुछ तो होता, जो हम पीते
हम दोनों की पीर एक सी
देखो कभी कलेजा चीर
आओ बैठो पास कबीर
हम दोनों की एक लकीर
-राजकुमारी रश्मि
हम दोनों की एक लकीर
तुम अँधियारा दूर भगाते
हम गीतों की जोत जलाते
दोनों साधे रहते मन में
अपने आँसू-जग की पीर
तन माटी का, जगत कांच का
फिर भी झगड़ा तीन–पाँच का
मन जोगी तो, लगे एक से
राख मलें या मलें अबीर
तुमने धूप चदरिया तानी
हमने इन गीतों की बानी
सूरज ओढ़ा दोनों ने ही
हम राही तुम आलमगीर
मृगजल के सारे घर रीते
कुछ तो होता, जो हम पीते
हम दोनों की पीर एक सी
देखो कभी कलेजा चीर
आओ बैठो पास कबीर
हम दोनों की एक लकीर
-राजकुमारी रश्मि
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