फिर बज उठे हवा के नूपुर
फूलों के, भौंरों के चर्चे
खुले आम आँगन-गलियारे
बँटने लगे धूल के पर्चे
जाने क्या कह दिया दरद ने
रह-रह लगे बाँस वन बजने
पीले पड़े फसल के चेहरे
वृक्ष धरा पर लगे उतरने
पुरवा लगी तोड़ने तन को
धारहीन पछुआ के बरछे
बैर भाँजने हमसे, तुमसे
मन हारेगा फिर मौसम से
निपटे नहीं हिसाब पुराने
तन, रस, रूप, अधर, संयम से
फूलों से बच भी जाएं तो
गंधों के तेवर हैं तिरछे।
-विनोद निगम
फूलों के, भौंरों के चर्चे
खुले आम आँगन-गलियारे
बँटने लगे धूल के पर्चे
जाने क्या कह दिया दरद ने
रह-रह लगे बाँस वन बजने
पीले पड़े फसल के चेहरे
वृक्ष धरा पर लगे उतरने
पुरवा लगी तोड़ने तन को
धारहीन पछुआ के बरछे
बैर भाँजने हमसे, तुमसे
मन हारेगा फिर मौसम से
निपटे नहीं हिसाब पुराने
तन, रस, रूप, अधर, संयम से
फूलों से बच भी जाएं तो
गंधों के तेवर हैं तिरछे।
-विनोद निगम
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