राजमार्ग पर सुबह सवेरे
यह कैसी शोभायात्रा है
इसमें लगन समर्पण कितना
आडंबर की क्या मात्रा है
पूछ रहा कोने में सिमटा
सहमा सा गणतंत्र !
एक ओर शहनाई वादन
एक ओर बज रहे नगाड़े
मादक धुन,लय ताल, सुरों पर
लोकनृत्य के जमे अखाड़े
उमड़ रही है एक ओर से
सैन्य बलों की प्रबल सुनामी
गर्वोन्नत हो,बड़ी शान से
राजा जी ले रहे सलामी
कौन दे गया वैभवशाली
उत्सव का गुरुमंत्र !
राजपुरुष हैं, शासकगण हैं
प्रजा देखती है विस्मय से
प्रहरीगण पहरा देते हैं
यहाँ न जाने किसके भय से
गण्यमान्य अभिजात वर्ग में
गण का क्या, वह तो नगण्य है
वह उपयोगी वस्तु मात्र है
या फिर कोई जिन्स पण्य है
एक राष्ट् के समारोह में
पलता क्या षड्यंत्र !
यह है कैसी उत्सव लीला
होता यह कैसा प्रचार है
प्रश्नाकुल है व्यग्र आमजन
प्रश्नों की लंबी कतार है
कहाँ गए भोले आश्वासन
कहाँ गया सपना सुराज का
जो वंचित है इस वैभव से
क्या न रहा हिस्सा समाज का
मूल्यों का गुब्बारा फूटा
कहाँ हुआ है रंध्र !
बेसुध पड़ा हुआ जनमानस
कब होगा निस्तंद्र !
पूछ रहा कोने में सिमटा
सहमा-सा गणतंत्र !
- योगेन्द्र दत्त शर्मा
यह कैसी शोभायात्रा है
इसमें लगन समर्पण कितना
आडंबर की क्या मात्रा है
पूछ रहा कोने में सिमटा
सहमा सा गणतंत्र !
एक ओर शहनाई वादन
एक ओर बज रहे नगाड़े
मादक धुन,लय ताल, सुरों पर
लोकनृत्य के जमे अखाड़े
उमड़ रही है एक ओर से
सैन्य बलों की प्रबल सुनामी
गर्वोन्नत हो,बड़ी शान से
राजा जी ले रहे सलामी
कौन दे गया वैभवशाली
उत्सव का गुरुमंत्र !
राजपुरुष हैं, शासकगण हैं
प्रजा देखती है विस्मय से
प्रहरीगण पहरा देते हैं
यहाँ न जाने किसके भय से
गण्यमान्य अभिजात वर्ग में
गण का क्या, वह तो नगण्य है
वह उपयोगी वस्तु मात्र है
या फिर कोई जिन्स पण्य है
एक राष्ट् के समारोह में
पलता क्या षड्यंत्र !
यह है कैसी उत्सव लीला
होता यह कैसा प्रचार है
प्रश्नाकुल है व्यग्र आमजन
प्रश्नों की लंबी कतार है
कहाँ गए भोले आश्वासन
कहाँ गया सपना सुराज का
जो वंचित है इस वैभव से
क्या न रहा हिस्सा समाज का
मूल्यों का गुब्बारा फूटा
कहाँ हुआ है रंध्र !
बेसुध पड़ा हुआ जनमानस
कब होगा निस्तंद्र !
पूछ रहा कोने में सिमटा
सहमा-सा गणतंत्र !
- योगेन्द्र दत्त शर्मा
No comments:
Post a Comment