रूठो मत प्रान ! पास में रहकर
झरती हैं चाँद-किरन झर झर झर
सेंदुर की नदी, झील ईंगुर की
माथे तुम्हारे तुम सागर की
चूड़ी-सी चढ़कर कलाई पर
टूटो मत प्रान ! पास में रहकर
आँखों की शाख, देह का तना
टप-टप-टप महुवे का टपकना
मेरे हाथों हल्दी-सी लगकर
छूटो मत प्रान ! पास में रहकर
एक घूँट जल हो तो पीये
कब तक कोई छल में जीये
टूटे समन्दर, टूटे निर्झर
दो मत तुम प्रान ! पास में रहकर
-देवेन्द्र कुमार बंगाली
झरती हैं चाँद-किरन झर झर झर
सेंदुर की नदी, झील ईंगुर की
माथे तुम्हारे तुम सागर की
चूड़ी-सी चढ़कर कलाई पर
टूटो मत प्रान ! पास में रहकर
आँखों की शाख, देह का तना
टप-टप-टप महुवे का टपकना
मेरे हाथों हल्दी-सी लगकर
छूटो मत प्रान ! पास में रहकर
एक घूँट जल हो तो पीये
कब तक कोई छल में जीये
टूटे समन्दर, टूटे निर्झर
दो मत तुम प्रान ! पास में रहकर
-देवेन्द्र कुमार बंगाली
bahut sundar
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