माँ बच्चे के गले बाँधती
चंदा चाँदी का
चंद्रदोष से बचे पुत्र
निर्मल-शीतल मन हो
सच्चे मोती की आभा से
दिपदिप ये तन हो
हँसुली-धगुली बंधे हुए ये
बालक मटक रहे
इनमें कोई रानी का है
कोई बाँदी का
श्वास-रोग ना हो
गुस्से से छाती ना फूले
लाल हमारा बचे नज़र से
खूब फले-फूले
बालक का विद्रोह देख के
घबराती माता
बच्चे को दे रही अहिंसा-
मंतर गाँधी का
ये ही माँ का पीहर वाला
मीत पुराना है
इसीलिए परिचय बतलाती-
चंदा मामा है
इतना बड़ा कहाँ से लाए
सच्ची-मुच्ची का
माँ बच्चे को बहलाती दे
चंदा चाँदी का
-पंकज परिमल
वाह ...बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteलोकजीवन के चित्र उपस्थित कर पंकज जी ने मन को बाँध लिया है. माँ की ममता तर्क या सत्य नहीं कल्याण मात्र देखती है. गीत/नवगीत जब तर्क मात्र होता है तो नीरस हो जाता है, पंकज जी ने हबाव को प्रतिष्ठित कर जीवंतता साधी है.
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