अम्मा सपने में आईं थीं
उनके पीछे, उड़ती-उड़तीरंग-बिरंगे पंखों वाली
लिए हाथ जादू की छड़ियाँ
ढेरों परियाँ भी आईं थीं
अम्मा बैठ गईं खटिया पर
मेरा सर गोदी में रख कर
अम्मा किस्से लगीं बाँचने
और उसी क्षण मेरे सर पर
घुमा-घुमा जादू की छड़ियाँ
परियाँ सारी लगीं नाचने
घड़ी उम्र की उल्टी चल दी
मैं बन गया जरा-सा बच्चा
भोला-सा, मासूम बहुत ही
बिलकुल सीधा, बिलकुल सच्चा
अम्मा मुझको रहीं देखतीं
फिर होंठों-होंठों में बोलीं
मुन्ना क्या चिंता है तुझको
देह हुई क्यों पीली-पीली
चेहरा ऐसा कुम्हलाया है
जैसे सूखी हुई निबौली
नज़र लगी है तुझको शायद
या कुछ टोना किया गया है
किसी बुरी साया ने आकर
तेरा सारा खून पिया है
ठहर, अभी बस पल भर में ही
सारा टोना झाडूँगी मैं
तेरी नजर उतारूँगी मैं
अला-बला सब टालूँगी मैं
कहते-कहते अम्मा ने झट
खोल लिया आँचल का कोना,
आँचल के खूँटे में अम्मा
राई-नोन बाँध लाईं थीं
पीड़ाओं का घना हिमालय
जमा हुआ बरसों से दिल में
नेह-ताप अम्मा का पाकर
लगा अचानक आज पिघलने
बन धारा गंगा-जमुना की
नयनो में से लगा उतरने
मैं रोया, जी भर कर रोया
गला रुँधा हिचकी भी आई
अम्मा ने थोड़ा दुलराया
फिर थोड़ी सी डाँट लगाईं
अम्मा बोलीं
सुन रे मुन्ना
जब भी समय बुरा आता है
गैरों की क्या बात
स्वयं का साया साथ छोड़ जाता है
रोने-धोने से इस जग में
कोई प्रश्न नहीं हल होता
संघर्षो के इस बीहड़ में
बस, धीरज ही सम्बल होता
चाहे कितनी कठिन डगर हो
तू बस आगे बढ़ते जाना
पाँवों में छाले हों फिर भी
आँखों में आँसू मत लाना
बहुत हो गया रोना-धोना
चल बेटा मैं तुझे सुलाऊँ
तेरे सर पर चम्पी कर दूँ
कोई लोरी तुझे सुनाऊँ
अम्मा लोरी लगीं सुनाने
परियाँ जादू लगीं दिखाने
मीठे सपनों में मैं खोया
गहरी नींद देर तक सोया
मुद्दत बाद अचानक ऐसी
गहरी नींद मुझे आई थी
-शिवजी श्रीवास्तव
बहुत सुन्दर नवगीत हार्दिक बधाई आदरणीय व्योंम जी आ. श्रीवास्तव जी
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