June 27, 2014

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु !


-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु !
पूछेगा सारा गाँव, बंधु !

यह घाट वही जिस पर  हँसकर
वह कभी नहाती थी धँस कर
आँखे रह जाती थीं  फँस कर
कँपते थे दोनों पाँव,  बंधु !

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु !
पूछेगा सारा गाँव, बंधु !

[डलमऊ का गंगा घाट जहाँ बैठकर निराला जी ने इस अमर गीत की रचना की]














वह हँसी बहुत कुछ कहती थी
फिर भी अपने में रहती थी
सबकी सुनती थी, सहती थी
देती थी सबके दाँव,  बंधु !

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु !
पूछेगा सारा गाँव, बंधु !

-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला


[डलमऊ का गंगा घाट जहाँ बैठकर निराला जी ने अपना महत्वपूर्ण लेखन किया...... महाप्राण निराला की भव्य प्रतिमा]


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