प्रकृति ने भेजी है
फिर सौगात कोई
झील में फिर खिल उठा
जलजात कोई
सुबह का सूरज
सुनहरी धूप लेकर
गात चूमें
रश्मियों का रूप लेकर
ओस की बूँदें
ढुलकती मोतियों सी
और खेले उनसे
पुरईन पात कोई
भोर का तारा
अभी भी झांकता है
जलज से दूरी
गगन की नापता है
चाहता है आज
जी भर देखना उसको
कर न पाया कुछ
अभी तक बात कोई
- डॉ. प्रदीप शुक्ल
(फेसबुक नवगीत समूह से)
वाह्ह्ह् ... बहुत ही सुन्दर नवगीत आदरणीय प्रदीप शुक्ल जी।
ReplyDeleteबधाई आपको!