अब्बा बदले नहीं
न बदली है उनकी चौपाल
अब्बा की आवाज गूँजती
घर-आँगन थर्राते हैं
मारे भय के चुनियाँ मुनियाँ
दाँतों, ऊँगली चबाते है
ऐनक चढ़ा आँख पर
पढ़ लेते है मन का हाल
पूँजी नियम-कायदों की हाँ
नित प्रातः ही मिल जाती है
टूट गया यदि नियम, क्रोध से
दीवारें हिल जाती हैं
अम्मा ने आँसू पोंछे गर
मचता तुरत बबाल
पूरे वक्त रसोईघर में
अम्मा खटती रहती है
अब्बा के संभाषण अपने
कानों सुनती रहती है
हँसना भूल गयी है
खुद से करती यही सवाल
-शशि पुरवार
न बदली है उनकी चौपाल
अब्बा की आवाज गूँजती
घर-आँगन थर्राते हैं
मारे भय के चुनियाँ मुनियाँ
दाँतों, ऊँगली चबाते है
ऐनक चढ़ा आँख पर
पढ़ लेते है मन का हाल
पूँजी नियम-कायदों की हाँ
नित प्रातः ही मिल जाती है
टूट गया यदि नियम, क्रोध से
दीवारें हिल जाती हैं
अम्मा ने आँसू पोंछे गर
मचता तुरत बबाल
पूरे वक्त रसोईघर में
अम्मा खटती रहती है
अब्बा के संभाषण अपने
कानों सुनती रहती है
हँसना भूल गयी है
खुद से करती यही सवाल
-शशि पुरवार
मुझे भी यहाँ स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार व्योम जी ,आज लिखने का उत्साह और दुगना हो गया। मेहनत सफल हो गयी। आभार आपका
ReplyDeleteशशि जी ने बहुत सुंदर नवगीत की रचना की है। वे इसी तरह तरक्की करती रहें, शुभ कामनाएँ
ReplyDeletebahut sunder navgeet bahut bahut badhai
ReplyDeleterachana
bahut sundar navgeet shashi ji
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ReplyDeleteshashi di ...bahut khoobsurat geet ban padaa hai ..hardik badhai sweekaren ......
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