October 2, 2013

अब्बा बदले नहीं

अब्बा बदले नहीं
न बदली है उनकी चौपाल

अब्बा की आवाज गूँजती
घर-आँगन थर्राते हैं
मारे भय के चुनियाँ मुनियाँ
दाँतों, ऊँगली चबाते है
ऐनक चढ़ा आँख पर
पढ़ लेते है मन का हाल

पूँजी नियम-कायदों की हाँ
नित प्रातः ही मिल जाती है
टूट गया यदि नियम, क्रोध से
दीवारें हिल जाती हैं
अम्मा ने आँसू पोंछे गर
मचता तुरत बबाल

पूरे वक्त रसोईघर में
अम्मा खटती रहती है
अब्बा के संभाषण अपने
कानों सुनती रहती है
हँसना भूल गयी है
खुद से करती यही सवाल

-शशि पुरवार

10 comments:

  1. मुझे भी यहाँ स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार व्योम जी ,आज लिखने का उत्साह और दुगना हो गया। मेहनत सफल हो गयी। आभार आपका

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  2. कल्पना रामानी9:10 AM

    शशि जी ने बहुत सुंदर नवगीत की रचना की है। वे इसी तरह तरक्की करती रहें, शुभ कामनाएँ

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  3. bahut sunder navgeet bahut bahut badhai
    rachana

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  4. bahut sundar navgeet shashi ji

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  7. shashi di ...bahut khoobsurat geet ban padaa hai ..hardik badhai sweekaren ......

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