गाँव छोड़ क्या लेने आये
बीच शहर कागा
यहाँ नहीं होने वाली है
रंच कदर कागा
हाल तुम्हारा यहाँ न कोई
लेने वाला है
रीति-रिवाजों, धर्म-कर्म का
गड़बडझाला है
लोग मशीनी ढँग से करते
गुजर-बसर कागा
चोंच रगड़ते थे मुंडेर पर
चिकनी होती थी
आस बँधी रहती जब रोटी
सिंकनी होती थी
ममता भरी हथेली का
था और असर कागा
तुम आते तो लगता
पाहुन आने वाला है
बोल तृम्हारा
अच्छी खबर सुनाने वाला है
कौन कहेगा, 'काँव' बोलकर
अब न ठहर कागा
दूध-भात की आँगन धरी
कठौती होती थी
तृप्त आत्मा से फिर
मान-मनौती होती थी
अम्मा शगुन मनाती
तुम पर डाल नजर कागा
अब न रही वह बात
भाव सौतेले होते हैं
रोटी के बदले हाथों में
ढेले होते हैं
कैसे काटोगे
जीवन का शेष सफर कागा
-शिवभजन कमलेश
बीच शहर कागा
यहाँ नहीं होने वाली है
रंच कदर कागा
हाल तुम्हारा यहाँ न कोई
लेने वाला है
रीति-रिवाजों, धर्म-कर्म का
गड़बडझाला है
लोग मशीनी ढँग से करते
गुजर-बसर कागा
चोंच रगड़ते थे मुंडेर पर
चिकनी होती थी
आस बँधी रहती जब रोटी
सिंकनी होती थी
ममता भरी हथेली का
था और असर कागा
तुम आते तो लगता
पाहुन आने वाला है
बोल तृम्हारा
अच्छी खबर सुनाने वाला है
कौन कहेगा, 'काँव' बोलकर
अब न ठहर कागा
दूध-भात की आँगन धरी
कठौती होती थी
तृप्त आत्मा से फिर
मान-मनौती होती थी
अम्मा शगुन मनाती
तुम पर डाल नजर कागा
अब न रही वह बात
भाव सौतेले होते हैं
रोटी के बदले हाथों में
ढेले होते हैं
कैसे काटोगे
जीवन का शेष सफर कागा
-शिवभजन कमलेश
अब समझ आया कागा का दर्द
ReplyDeletebahut sundar navgeet hai , kitni garai baat kahi hai rachnakar ko sundar srajan hetu hardik badhai
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