गीत न हम गाते तो
घुट-घुट के मर जाते
सुई पटक सन्नाटा
सांस थमी-ठहरी सी
चेतना अचेतन सी
या गूंगी बहरी सी
अनदेखे तूफां की
त्योरी से डर जाते
खो जाती तन-मन की
छुई-मुई सी सिहरन
सो जाती रो-रो कर
प्राणों की हर पुलकन
पथरीले सम्वेदन
किस द्वारे पर जाते
रोम-रोम पीड़ा का
कुम्भ कलश हो जाता
अंतस का आलोडन
भला किधर को जाता
ना बहते नैनों से
तो कितने भर जाते
-डा० सरिता शर्मा
[फेसबुक से साभार]
घुट-घुट के मर जाते
सुई पटक सन्नाटा
सांस थमी-ठहरी सी
चेतना अचेतन सी
या गूंगी बहरी सी
अनदेखे तूफां की
त्योरी से डर जाते
खो जाती तन-मन की
छुई-मुई सी सिहरन
सो जाती रो-रो कर
प्राणों की हर पुलकन
पथरीले सम्वेदन
किस द्वारे पर जाते
रोम-रोम पीड़ा का
कुम्भ कलश हो जाता
अंतस का आलोडन
भला किधर को जाता
ना बहते नैनों से
तो कितने भर जाते
-डा० सरिता शर्मा
[फेसबुक से साभार]
मन की अथाह पीड़ा को दर्शाता बहुत सुंदर नवगीत, सचमुच गीत न होते तो हम जैसे खो जाते...
ReplyDeleteसुंदर नवगीत के लिए सरिता जी को हार्दिक बधाई
वाह क्या बात!
ReplyDeleteबेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति....