August 31, 2013

सिसक रही हिरनी

राजा मूँछ मरोड़ रहा है
सिसक रही हिरनी

बड़े-बड़े सींगों वाला मृग
राजा ने मारा
किसकी यहाँ मजाल
कहे राजा को हत्यारा
मुर्दानी छायी जंगल में
सब चुपचाप खड़े
सोच रहे सब यही कि
आखिर आगे कौन बड़े
घूम रहा आक्रोश वृत्त में
ज्यों घूमे घिरनी

एक कहीं से स्वर उभरा
मुँह सबने उचकाये
दबे पड़े साहस के सहसा
पंख उभर आये
मन ही मन संकल्प हो गए
आगे बढ़ने के
जंगल के अत्याचारी से
जमकर लड़ने के
पल में बदली हवा
मुट्ठियाँ सबकी दिखीं तनी

रानी तू कह दे राजा से
परजा जान गई
अब अपनी अकूत ताकत 
परजा पहचान गई
मचल गई जिस दिन परजा
सिंहासन डोलेगा
शोषक की औकात कहाँ
कुछ आकर बोलेगा
उठो उठो सब उठो
उठेगी पूरी विकट वनी

-डा0 जगदीश व्योम


7 comments:

  1. मार्मिक पर यथार्थ

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  2. बहुत सुन्दर गीत

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  3. वाह! बहुत ही सुन्दर!

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  4. अनूठे बिंबों से सुसज्जित शानदार नवगीत

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  5. कल्पना रामानी8:39 PM

    अनूठे बिंबों से सुसज्जित शानदार नवगीत

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  6. Anonymous8:40 PM

    अनूठे बिंबों से सुसज्जित शानदार नवगीत

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  7. heart touching...

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