दिन डूबा
अब घर जाएँगेकैसा आया समय कि साँझे
होने लगे बंद दरवाजे
देर हुई तो घर वाले भी
हमें देखकर डर जाएँगे
आँखें आँखों से छिपती हैं
नजरों में छुरियाँ दिपती हैं
हँसी देखकर हँसी सहमती
क्या सब गीत बिखर जाएँगे
गली-गली औ॔' कूचे-कूचे
भटक रहा पर राह न पूछे
काँप गया वह, किसने पूछा
"सुनिए आप किधर जाएँगे"
-रामदरस मिश्र
वाह! बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआदरणीय आपकी यह प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
ReplyDeletehttp://nirjhar.times.blogspot.in पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
सादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete