August 10, 2013

दिन डूबा

दिन डूबा
अब घर जाएँगे

कैसा आया समय कि साँझे
होने लगे बंद दरवाजे
देर हुई तो घर वाले भी
हमें देखकर डर जाएँगे

आँखें आँखों से छिपती हैं
नजरों में छुरियाँ दिपती हैं
हँसी देखकर हँसी सहमती
क्या सब गीत बिखर जाएँगे

गली-गली औ॔' कूचे-कूचे
भटक रहा पर राह न पूछे
काँप गया वह, किसने पूछा
"सुनिए आप किधर जाएँगे"

-रामदरस मिश्र

5 comments:

  1. आदरणीय आपकी यह प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
    http://nirjhar.times.blogspot.in पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
    सादर

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  2. कल्पना रामानी9:05 AM

    बहुत सुंदर

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