July 26, 2013

है दुनिया जादू मंतर की

भैया रे! ओ भैया रे!
है दुनिया जादू मंतर की

पार समुंदर का जादूगर
मीठा मंतर मारे
पड़े चाँदनी काली होते
मीठे सोते खारे
बढ़ी- बढ़ी जाती गहराई
उथली धरती खंतर की

अपनी खाते- पीते ऐसा
करे टोटका- टोना
कौर हाथ से छूटे, मिट्टी
होता सारा सोना
एक खोखले भय से दुर्गत
ठाँय लुकुम हर अंतर की

उर्वर धरती पर तामस, है
बीज तमेसर बोये
अहं-ब्रह्म दुर्गन्धित कालिख
दूध- नदी में धोये
दिग- दिगंत अनुगूँजें हैं मन
काले- काले कंतर की

पाँच पहाड़ी, पाँच पींजरे
हर पिंजरे में सुग्गा
रक्त समय का पीते
लेते हैं बारूदी चुग्गा
इनकी उमर, उमर जादूगर
जादूकथा निरंतर की

- शशिकांत गीते

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर नवगीत ...आज के हालात का सटीक चित्रण ....अनूठे बिम्ब प्रयोग के द्वारा ..बधाई शशिकांत जी

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  2. आपकी यह सुन्दर रचना आज दिनांक 26.07.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  3. बहुत शानदार पोस्ट

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