कितनी सुखद है
धूप हेमंतीसुबह से शाम तक
इसमें नहाकर भी
हमारा जी नहीं भरता
विलग हो
दूर जाने को
तनिक भी मन नहीं करता
अरे ! कितनी मधुर है
धूप हेमंती
प्रिया सम
गोद में इसकी
चलो
सो जायँ
दिन भर के लिए
खो जायँ
कितनी काम्य
कितनी मोहिनी है
धूप हेमंती
-महेन्द्र भटनागर
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