July 7, 2012

मछली बोली

मछली बोली
सुन मछुए
मत फेंक रुपहला जाल

मैं पानी के हाथ बिकानी
पानी मेरी लाज कहानी
मुझे न कर निर्वसना
इन लहरों से नहीं निकाल

अंकशायिनी हूँ अथाह की
प्राण-प्रिया निर्मल प्रवाह की
मत छू मेरी देह
मुझे इस रेती पर मत डाल

मैं जो तेरे घर जाऊँगी
रस्ते ही में मर जाऊँगी
मेरी सागर-प्रीत
मुझे गागर में नहीं उछाल

मछली बोली
सुन मछुए
मत फेंक रुपहला जाल।

-डा० रवीन्द्र भ्रमर


2 comments:

  1. क्या बात है वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-935 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  2. भ्रमर जी को विनम्र श्रद्धांजलि..आपके इस प्रयास से अति सुन्दर रचना हम तक पहुंची है . इसके लिए आपका आभार..

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