June 26, 2012

अपने पंख पसारो

साँसें टूट न 
जायें सुगना, 
अपने पंख पसारो!

बिना लड़े किसने पाया है
मितवा दाना-पानी
फिर भी तुम्हें अकर्मक देखा
होती है हैरानी
धरती पर जो जन्मा उसको
हर पल लड़ना होगा
शिखर कई होंगे राहों में
जिन पर चढ़ना होगा
समर जीतना
ध्येय तुम्हारा, 
बिना लड़े मत हारो
साँसें टूट न ...

जाती रहे उमंग, अँधेरा
होता और घना है
एक नया सूरज लाना
हर पंछी का सपना है
घोर निराशा के मेघों को
दूर भगाना होगा
अन्तर मन में 
नव-प्रकाश का
दीप जलाना होगा
गूँज रहे स्वर
वन-उपवन में, 
चारों ओर निहारो
साँसें टूट न ...

-विद्यानन्दन राजीव
[ कठहरा, अलीगढ़]

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