January 8, 2012

अपना गाँव समाज

बड़े चाव से बतियाता था
अपना गाँव-समाज
छोड़ दिया है चौपालों ने
मिलना-जुलना आज

बीन-बान लाता था
लकड़ी
अपना दाऊ बागों से
धर अलाव
भर देता था, फिर
बच्चों को
अनुरागों से

छोट, बड़ों से
गपियाते थे
आँखिन भरे लिहाज

नैहर से जब आते
मामा
दौड़े-दौड़े सब आते
फूले नहीं समाते
मिल कर
घण्टों-घण्टों बतियाते

भेंटें होतीं,
हँसना होता
खुलते थे कुछ राज

जब जाता था
घर से कोई
पीछे-पीछे पग चलते
गाँव किनारे तक
आकर सब
अपनी नम आँखें मलते

तोड़ दिया है किसने
आपसदारी का
वह साज

-अवनीश सिंह चौहान

4 comments:

  1. सुखद यादें ....वर्तमान को करुण आवाज़ मे पुकारती

    ReplyDelete
  2. मानवीय संवेदना से भरपूर सुन्दर कलात्मक नवगीत। प्रभावित हुआ।
    *महेंद्रभटनागर
    ई-मेल : drmahendra02@gmail.com

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर नवगीत है

    ReplyDelete
  4. सुन्दर नवगीत यादों का सजीव चित्रण

    ReplyDelete