कुछ अलग तबीयत बूबासों में
मुद्दत से रहते आए हम देवासों में
पैर टिकाए इस धरती पर ठीक तरह से
विचरे हैं मनपाखी अपने आकाशों में
कंधे भले गैर के हों पर
अरथी पर अपनी सो लेना
कहाँ सरल है ?
कभी नहीं थे ऐसे संकट पहचानों के
मेजबान के चेहरे लगते मेहमानों से
सुगढ़ शख्सियत के माने
मुद्दत से रहते आए हम देवासों में
पैर टिकाए इस धरती पर ठीक तरह से
विचरे हैं मनपाखी अपने आकाशों में
कंधे भले गैर के हों पर
अरथी पर अपनी सो लेना
कहाँ सरल है ?
कभी नहीं थे ऐसे संकट पहचानों के
मेजबान के चेहरे लगते मेहमानों से
सुगढ़ शख्सियत के माने
कुछ और हो गए
पशुओं से हो गए मूल्य कम
पशुओं से हो गए मूल्य कम
इंसानों के
गैरों की क्या बात करें हम
कंधों सिर अपना ढो लेना
कहाँ सरल है ?
घुन-सी जहाँ लगी हों चिंताएँ होने की
धरती फाड़ भविष्यों को
गैरों की क्या बात करें हम
कंधों सिर अपना ढो लेना
कहाँ सरल है ?
घुन-सी जहाँ लगी हों चिंताएँ होने की
धरती फाड़ भविष्यों को
क्रमशः बोने की
बना रहे क्रम इस जीवन का
बना रहे क्रम इस जीवन का
इसीलिए बस
करनी होगी पहल
करनी होगी पहल
शादियों की, गौने की
भले न हों हम शहंशाह
अंतस में लेकिन
भले न हों हम शहंशाह
अंतस में लेकिन
अपने भी ताजमहल है।
-नईम
[ आजकल दिसम्बर 1998 से साभार ]
सुंदर रचना !
ReplyDeleteआभार !
नए साल की हार्दिक बधाई आपको !
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteवाह .....बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नवगीत है
ReplyDeleteवाह !!! अद्भुत ....
ReplyDeleteअपने जैसा होना कहाँ सरल है ....व्यक्ति दूसरों के जैसा बनने मे उम्र बिता देता है