January 2, 2012

इन, उनके जैसा हो लेना


[ नईम ]


इन, उनके जैसा हो लेना
बहुत सरल है
लेकिन अपने जैसा होना
बहुत विरल है।

औरों से 
कुछ अलग तबीयत बूबासों में
मुद्दत से रहते आए हम देवासों में
पैर टिकाए इस धरती पर ठीक तरह से
विचरे हैं मनपाखी अपने आकाशों में
कंधे भले गैर के हों पर
अरथी पर अपनी सो लेना
कहाँ सरल है ?

कभी नहीं थे ऐसे संकट पहचानों के
मेजबान के चेहरे लगते मेहमानों से
सुगढ़ शख्सियत के माने 
कुछ और हो गए
पशुओं से हो गए मूल्य कम 
इंसानों के
गैरों की क्या बात करें हम
कंधों सिर अपना ढो लेना
कहाँ सरल है ?

घुन-सी जहाँ लगी हों चिंताएँ होने की
धरती फाड़ भविष्यों को 
क्रमशः बोने की
बना रहे क्रम इस जीवन का 
इसीलिए बस
करनी होगी पहल 
शादियों की, गौने की
भले न हों हम शहंशाह
अंतस में लेकिन 
अपने भी ताजमहल है।

-नईम

[ आजकल दिसम्बर 1998 से साभार ]

5 comments:

  1. सुंदर रचना !

    आभार !
    नए साल की हार्दिक बधाई आपको !

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  2. वाह .....बहुत खूब

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  3. बहुत सुन्दर नवगीत है

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  4. वाह !!! अद्भुत ....
    अपने जैसा होना कहाँ सरल है ....व्यक्ति दूसरों के जैसा बनने मे उम्र बिता देता है

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