January 14, 2012

अनचाहे फूलेंगे टेसू के फूल

बीती दुहरायेंगे
तन मन भरमायेंगे
प्राणों को छू लेंगे टेसू के फूल

धूप की चिरैया
अमराई के आंगन में
फुदकेगी, गाएगी
बंसवट के कानों में
उम्र च़ढी हवा
प्रीति के स्वर दुहराएगी
दृग में तिर जाएंगे
पानी में उतराते
जोड़े सुरखाबों के
महुए की डाल
झुकेंगी, परिचित बाँहों सी
बाँहों तक जाएंगी
आसपास झूमेंगे
सुधियों को चूमेंगे
नयनों में झूलेंगे, टेसू के फूल

इच्छाओं के तन पर
रह रह पुरवाई के
कांटे चुभ जाएंगे
आँखों में,
बुझे हुए खालीपन के
अनगिन बिरवे अंखुवाएंगे
सूनापन डोलेगा
आंगन दहलीजों के
बन्द द्वार खोलेगा
अमलतास के पत्तों से
झरते चन्दन-क्षण
लौट नहीं आएंगे
प्यास को उगाएंगे
सांस में समाएंगे,
जन्म भर न भूलेंगे
टेसू के फूल

-डा. विनोद निगम

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना , बधाई.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी

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  3. सुंदर बेहद खूबसूरत गीत !
    शब्दों में नयापन भी मिला !
    आभार !

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  4. aadarniy sir
    aapko comment karun main is yogy to nahi hun par aapki prastuti se mujhe kuchh seekhne ko mila.
    shabdo ka samanjasy aor chunav dono ne hi man ko bhaut hi aakarshhit kiya
    sadar naman
    poonam

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  5. गीतों की पंक्तियाँ अच्छी लगी ..

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  6. बहुत सुन्दर नवगीत

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  7. बहुत सुन्दर नवगीत है

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