December 23, 2011

साँझ के बादल

धर्मवीर भारती
[ 25-12-1926 - 04-09-1997 ]


ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ातीं आतीं मंथर चाल

नीलम पर
किरनों की साँझी
एक न डोरी
एक न माँझी
फिर भी
लाद निरंतर लातीं
सेंदुर और प्रवाल

कुछ समीप की
कुछ सुदूर की
कुछ चंदन की
कुछ कपूर की
कुछ में गेरू
कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल

-डा. धर्मवीर भारती

3 comments:

  1. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.

    पधारें मेरे ब्लॉग पर भी, आभारी होऊंगा.

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  2. धर्मवीर भारतीजी की रचना पढ़वाने के लिए आभार आपका ..

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  3. ये रचना मेरी पाठ्य पुस्तक में थी। दुबारा पढ़वाने के लिए आभार

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