कथनी से करनी तक
है कितना कमजोर पिता"चोरी है अपराध"
सीख देता है चोर पिता ।
घर से लेकर सरकारों तक
यही फजीहत है
शिक्षक, नेता, पिता, धर्म का
काम नसीहत है
कूटनीति से खींच रहा है
घर की डोर पिता ।
केवल माँ का प्यार प्राप्त कर
बच्चे बड़े हुए
बच्चे गलत पिता के सम्मुख
तनकर खड़े हुए
उस दिन से अनुशासन पर
देता है जोर पिता ।
घर से भागे हुए पिता ही
देश चलाते हैं
इसीलिए वे
जिम्मेदारी से कतराते हैं
घर से लेकर सरकारों तक
हैं हर ओर पिता ।
पिताओं पर इतना कुपित होना सही है क्या. यह सर्व सत्य नहीं है.
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक रचना के लिए बहुत- बहुत आभार
ReplyDeleteऐसे पिता अक़्सर शराबी होते हैं। कविता में सचाई है। ऐसा हम अपने इर्द-गिर्द देखते हैं। रचना में विषय की नवीनता भी दृष्टव्य है।
ReplyDelete*महेंद्रभटनागर
डा० महेन्द्र भटनागर जी आपका बहुत आभार टिप्पणी के लिये। रचना दीक्षित और शुक्ला जी आप सभी का आभार।
ReplyDeleteनवगीत में जिस प्रकार से आज के समाज में विस्तारित होती कुरीतियों को शब्द दिए हैं वह सराहनीय है .और अंततः राजनीति को छूते हुए कितनी सरलता से चित्र प्रस्तुत किया ...वाह वाह
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