बांध गई मुस्कान किसी की
घेरों में
बिछुए से पड़ गए
कुआंरे पैरों में ।
धूप-धूप हो गईं
शिराएं
रक्तचाप छू गईं
हवाएँ
शब्द-वृत्त मदहोश
छुअन के
अर्थ-बोध
तुलसी-चंदन के
सांसें जैसे बंधी
सतपदी फेरों में ।
सूखे दिन
आसाढ़ हो गए
सपने तिल से
ताड़ हो गए
सन्नाटे लिख गए
समास अंधेरों में ।
-विजय किशोर मानव
( पूर्व कार्यकारी संपादक- कादम्बिनी )
बहुत खूब ||
ReplyDeleteबधाई व्योम जी ||
सुन्दर रचना .....
ReplyDeleteसुन्दर रचना .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
Ati Sundar.
ReplyDeletetriloksinghthakurela.blogspot.com
आज विजय किशोर मानव का नवगीत प्रकाशित किया जा रहा है। मानव जी सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका कादम्बिनी के कार्यकारी सम्पादक रहे हैं। आपके अनेक नवगीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। कृपया अपनी गरिमामय टिप्पणी लिखकर नवगीत और नवगीतकार का सम्मान करें।
ReplyDeleteShabdon ka jadu bhavnaon ke jadugar dwara....badhai
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