September 30, 2011

बांध गई मुस्कान किसी की


बांध गई मुस्कान किसी की
घेरों में
बिछुए से पड़ गए
कुआंरे पैरों में

धूप-धूप हो गईं
शिराएं
रक्तचाप छू गईं
हवाएँ
शब्द-वृत्त मदहोश
छुअन के
अर्थ-बोध
तुलसी-चंदन के
सांसें जैसे बंधी
सतपदी फेरों में ।

सूखे दिन
आसाढ़ हो गए
सपने तिल से
ताड़ हो गए
सन्नाटे लिख गए
समास अंधेरों में ।

-विजय किशोर मानव


( पूर्व कार्यकारी संपादक- कादम्बिनी )

8 comments:

  1. बहुत खूब ||
    बधाई व्योम जी ||

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  2. सुन्दर रचना .....

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  3. सुन्दर रचना .....

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  6. आज विजय किशोर मानव का नवगीत प्रकाशित किया जा रहा है। मानव जी सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका कादम्बिनी के कार्यकारी सम्पादक रहे हैं। आपके अनेक नवगीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। कृपया अपनी गरिमामय टिप्पणी लिखकर नवगीत और नवगीतकार का सम्मान करें।

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  7. Anonymous1:44 AM

    Shabdon ka jadu bhavnaon ke jadugar dwara....badhai

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