यात्राएँ गंगा सागर की
नावें पत्थर की
ऐसी बदल गयी है आवो-हवा
ऐसी बदल गयी है आवो-हवा
शहर भर की ।
चोंच पसारे चिड़िया बीने
आँगन-आँगन दाना
स्वाती भर सीपियाँ देखतीं
बादल आना-जाना
सूरज छूने की इच्छाएँ,
चोंच पसारे चिड़िया बीने
आँगन-आँगन दाना
स्वाती भर सीपियाँ देखतीं
बादल आना-जाना
सूरज छूने की इच्छाएँ,
कैदें हैं घर की
यात्राएँ गंगा सागर की
यात्राएँ गंगा सागर की
नावें पत्थर की ।
अक्षर-अक्षर स्याही आँजे
रंग पुते -से चेहरे
हमें मिली हैं आँखें
सुनने वाले सब बहरे
बाहर से मुस्काने लगतीं
अक्षर-अक्षर स्याही आँजे
रंग पुते -से चेहरे
हमें मिली हैं आँखें
सुनने वाले सब बहरे
बाहर से मुस्काने लगतीं
चोटें भीतर की
यात्राएँ गंगा सागर की
यात्राएँ गंगा सागर की
नावें पत्थर की ।
खुले आम चुन दिये गये हैं
हम पूरे के पूरे
कोई रहे मदारी हमको
रहना सिर्फ जमूरे
हम झूठे ही मरे
खुले आम चुन दिये गये हैं
हम पूरे के पूरे
कोई रहे मदारी हमको
रहना सिर्फ जमूरे
हम झूठे ही मरे
लाख क़समें खाईं सर की
यात्राएँ गंगा सागर की
यात्राएँ गंगा सागर की
नावें पत्थर की ।
-विजय किशोर मानव
बहुत अच्छी रचना ...आभार बांटने के लिए
ReplyDeleteटिप्पणी के लिये आभार
ReplyDeletebehtreen bhaavabhivaykti....
ReplyDeleteबहुत अच्छा और सामयिक नवगीत के लिये वधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छा और सामयिक नवगीत के लिये वधाई।
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