याद आया ।
याद आया, गाय का घी-दूध मट्ठा
बाजरे की रोटियाँ, आचार खट्टा
शहर में तो आज तक
कुछ भी न भाया
याद आया ।
याद आया पेड़ पर चढ़ना, चढ़ाना
हों किसी के भी पके अमरूद खाना
और सबसे देखना
खुद को सवाया
याद आया ।
याद आया खूब रस की खीर खाना
स्वाद कैसा था, बहुत मुश्किल बताना
बाद उसके फिर हमें
कुछ भी न भाया
याद आया ।
याद आया ईद, होली का मनाना
कौन क्या है यह सभी कुछ भूल जाना
शहर की रस्सा कसी में
कुछ न पाया
याद आया ।
-कृष्ण शलभ
बहुत खुबसूरत ......आपकी रचना ने मुझे भी गाँव की याद दिला दी है
ReplyDeleteखूबसूरत रचना , आभार
ReplyDeleteवाह! क्या बात है...बहुत सुन्दर
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