धौंस किसी की नहीं कुबूल की
कहते हैं लोग, बड़ी भूल की ।फूलों पर प्राण वारते रहे
मधुवन को ही सँवारते रहे
गले पड़ी दुश्मनी बबूल की ।
तने रहे सदा स्वाभिमान से
दूर रहे दरबारी गान से
और हवा अपने प्रतिकूल की ।
चुटकी भर सच ललाट पर धरे
पता नहीं किसको-किसको अखरे
कीमत खुद भी नहीं वसूल की
कहते हैं लोग बड़ी भूल की ।
-डा० मृदुल शर्मा
( समांतर पत्रिका से साभार )
( समांतर पत्रिका से साभार )
खूबसूरत
ReplyDelete" चुटकी भर सच ललाट पर धरे
ReplyDeleteपता नहीं किस किस को अखरे ।"
बहुत अच्छा, आपने तो सब कुछ कह दिया है।
-करैया